बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 राजनीति विज्ञान बीए सेमेस्टर-3 राजनीति विज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 राजनीति विज्ञान
प्रश्न- भारत में स्थानीय शासन के सम्बन्ध में 'पंचायत राज' के सिद्धान्त व व्यवहार की आलोचना कीजिए।
अथवा
पंचायत समिति के संगठन पर प्रकाश डालिए। यह समिति ग्राम विकास के लिए कौन से कार्य करती है?
अथवा
भारत में पंचायती राज की उपलब्धियों का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर -
पंचायती राज - भारत गाँवों का देश है। गाँवों की उन्नति व प्रगति पर ही देश की प्रगति निर्भर करती है। हमारे संविधान में यह निर्देश दिया गया है कि "राज्य ग्राम पंचायतों के निर्माण के लिए जो कदम उठायेगा और उन्हें शक्ति और अधिकार प्रदान करेगा जिससे कि वे स्वशासन की इकाई के रूप में कार्य कर सके। अतः इस प्रकार हमारा जनतन्त्र इस बुनियादी धारणा पर आधारित है कि शासन के प्रत्येक स्तर पर जनता अधिक से अधिक शासन कार्यों में हाथ बंटाये व स्वयं राज करने की शक्ति से हमारे देश में प्राचीनकाल में आपसी झगड़ों का निपटारा पंचायतें ही करती थीं। परन्तु ब्रिटिश शासन में यह धीरे-धीरे समाप्त हो गयी। परन्तु स्वाधीनता के बाद राज्य सरकारों ने पंचायतों की स्थापना की और विशेष ध्यान दिया। प्रो. रजनी कोठारी के अनुसार, "राष्ट्रीय नेतृत्व का एक दूरदर्शिता पूर्ण कार्य था पंचायतीराज की स्थापना इससे भारतीय राज व्यवस्था का विकेन्द्रीकरण हो रहा है और देश में एक सी स्थानीय संस्थाओं के निर्माण से उनकी एकता भी बढ़ रही है। इस प्रकार लोकतांत्रिक सरकार के गठन का अर्थ केवल शिखर पर लोकतंत्र का होना नहीं वरन राजनीतिक व्यवस्था के आधार पर भी लोकतन्त्र का विस्तार होना चाहिए। पंचायती राज की व्यवस्था का उद्देश्य देश के दूर-दूर के ग्रामों में स्थापित प्रशासन की इकाई को क्षेत्रीय व केन्द्रीय स्तरों पर उच्चतर शासन से सम्पर्क कराने का प्रयास किया जाता है।
स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद इसकी शुरुआत का श्रेय पंडित जवाहर लाल नेहरू को जाता है उन्हें पंचायती राज में अटूट विश्वास था। इनका कहना था कि "गावों के लोगों को अधिकार सौंपने चाहिए उनको काम करने दो चाहे वे हजारों गलतियाँ करें। इससे घबराने की जरूरत नहीं, पंचायतों को अधिकार दो
अतः इस प्रकार विभिन्न प्रान्तीय सरकारों ने ग्रामीण स्वशासन की इकाई के रूप में ग्राम पंचायतों का गठन किया तथा उन्हें जनता की आधारभूत जरूरतों को पूरा करने के तथा लोक प्रशासन के निम्नतम स्तर पर विभिन्न दायित्वों को निभाने के लिए सत्ता दी गयी। इस विचार का उल्लेख राज्य के नीति- निर्देशक तत्वों में किया गया है। 1951 में प्रथम पंचवर्षीय योजना में इस विचार में सामुदायिक विकास कार्यक्रम के रूप में बढ़ावा मिला। 1956 में द्वितीय पंचवर्षीय योजना में खण्ड विकास समितियों का गठन प्रस्तावित कर देश के समस्त ग्रामीण अंचलों में स्वशासन की लहर फैल गयी।
परन्तु इन सभी कोशिशों के बाद भी यह सन्तोषजनक सिद्ध नहीं हुई। वह अन्त में सरकार ने जब देखा कि सामुदायिक विकास कार्यक्रम पर काफी खर्च हो चुका है व इसकी सफलता के लम्बे-चौड़े दावे के बाद इसकी जांच के लिए 1957 में एक दल नियुक्त किया जिसका नाम बलवन्त राय मेहता समिति था। जिन्होंने बताया कि सामुदायिक विकास कार्यक्रम की बुनियादी त्रुटियाँ हैं कि जनता का सहयोग इसमें नहीं मिला। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में यह कहा कि जब तक स्थानीय नेताओं को जिम्मेदारी व अधिकार नहीं सौंपे जाते संविधान के निदेशक सिद्धान्तों का राजनीतिक व विकास सम्बन्धी लक्ष्य पूरा नहीं हो सकता। 1957 के अन्त में अपनी रिपोर्ट में यह सिफारिश की कि वे लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण व सामुदायिक विकास कार्यक्रमों को सफल बनाने हेतु पंचायती राज संस्थाओं की तुरन्त शुरुआत की जानी चाहिए। अध्ययन दल ने इसे लोकतन्त्रीय विकेन्द्रीकरण का नाम दिया। मेहता समिति ने देश में व्याप्त विविधताओं व विभिन्न सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक परिस्थितियों के कारण एक कठोर एकरूपता के स्थान पर योजना के वृहद सिद्धान्त निर्धारित किये जिसे 12 जनवरी 1958 में स्वीकार कर लिया गया। यह योजना निम्न थी -
1. स्थानीय स्वायत्त शासन का तीन स्तरों पर संगठन होना चाहिए निम्न स्तर पर ग्राम उच्चग्राम उप जिलों में तथा मध्य में दोनों को जोड़ने वाली कड़ी के रूप में किसी संस्था की स्थापना की जानी चाहिए।
2. स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं के पक्ष में अधिकारों व दायित्वों का वास्तविक हस्तान्तरण होना चाहिए।
3. अपने दायित्वों को ठीक तरह से निभाने के लिए उन्हें पर्याप्त संसाधन हस्तान्तरित किये जाने चाहिए।
4. योजना के संगठन द्वारा किये जने वाले सामाजिक व आर्थिक विकास के सभी कार्यक्रमों को इन्हीं संस्थानों के मध्य से क्रियान्वित किया जाना चाहिए।
प्रथम स्तर : ग्राम पंचायत - सबसे निचले स्तर पर ग्राम पंचायत हैं जिसमें ग्राम की सीमा में रहने वाले सभी वयस्क जिनकी आयु 18 वर्ष की हो गयी है। मतदान में भाग लेते हैं पंचायत एक कार्यकारिणी सभा है जिसमें उस क्षेत्र के प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित सदस्य होते हैं। अंतः उस ग्रामीण क्षेत्र के वयस्क लोगों की साधारण सभा को " ग्राम सभा' या गांव सभा कहते हैं तथा उसकी कार्यकारिणी को पंचायत कहते हैं। साधारण सभा के रूप में ग्राम सभा का कार्य लेखा-जोखा के विवरण पर बहस, इस समुदायिक कल्याण कार्यक्रमों के लिए स्वैच्छिक श्रम व अंशदान जुटाना, ग्राम से सम्बन्धित विकास की योजना का क्रियान्वयन व उसके हितकारी की पहचान, ग्राम में समाज के सभी वर्गों के बीच एकता व समन्वय की स्थापना करना, प्रौढ़ शिक्षा व अन्य कार्यक्रमों का संचालन लेखा परीक्षण प्रतिवेदन पर विचार करना। प्रशासकीय प्रतिवेदन की जाँच व आगामी वर्ष के कार्यक्रमों का निर्णय करना। कर प्रस्तावों व अन्य विषय की देख-रेख करना।
ग्राम पंचायत के कार्यों में सफाई, लोक स्वास्थ्य, सड़क की रोशनी, ग्राम की सड़कों व स्कूलों की मरम्मत, पीने की जल की आपूर्ति, श्मशान भूमि की व्यवस्था, जन्म व मृत्यु का आलेख सामाजिक व शिशु कल्याण के केन्द्रों की स्थापना, जानवरों व तालाबों पर नियंत्रण, परिवार नियोजन का प्रचार, कृषि व पशुपालन का विकास, सार्वजनिक भवनों का निर्माण, पुस्तकालयों, वाचनालयों व सामुदायिक कार्यों का प्रावधान, गृह उद्योगों का विकास सहकारी समितियों की स्थापना, सामूहिक खेती का संगठन, छुट-पुट विवादों का निर्णय सामुदायिक अस्तियों का परीक्षण व अनुरक्षण, सार्वजनिक वितरण प्रणाली का प्रबन्ध, वृद्धावस्था व विधवा पेंशन योजना में सफलता विकलांग व मंद बुद्धि व्यक्तियों का कल्याण, आर्थिक विकास की योजना बनाना, ग्रामीण क्लबों की स्थापना शिक्षा के क्षेत्र में सार्वजनिक चेतना, गरीबी दूर करने की योजना का क्रियान्वयन, लघु व कुटीर उद्योगों की योजना बनाना व सहायता करना। भूमि विकास व चकबन्दी व भूमि का संरक्षण करना। वृक्षारोपण व वृक्षों की रक्षा करना आदि। 1994 से उत्तर प्रदेशलपंचायत विधि के अधीन इसके कार्य क्षेत्र को अत्यन्त व्यापक कर दिया गया है।
परन्तु इसके कार्यों में सबसे बड़ी बाधा वित्त की है। इसकी वित्तीय संसाधनों के विषय में विस्तार से व्याख्या नहीं की गयी है। मेहता समिति ने विभिन्न प्रत्यक्ष करों से होने वाले आय व अन्य संसाधनों से मिलने वाले अनुदानों का वर्णन किया, परन्तु इन सुझावों को क्रियान्वित करने में सरकारें अभी तक असफल रही हैं। सामान्यतः पंचायतों के राजस्व के स्रोत निम्नांकित हैं सम्पत्ति कर, भूमि राजस्व कर किराया गाड़ी व व्यवसाय पर कर चुंगी आदि पर कर डाक बंगले की फीस, गंदे पानी की निकासी व पीने के पानी पर कर, बिजली व दुकान लगाने पर कर उपर्युक्त सुविधा जुटाने के लिए पंचायतें ग्रामीण वस्तुओं पर भी कर लगा सकती हैं। ग्राम पंचायत के कोष को "क्राम निधि" कहते हैं।
द्वितीय स्तर : पंचायत समिति - माध्यमिक स्तर पर पंचायत समितियां हैं। समिति में ग्राम पंचायतों के प्रधान, दलित जाति व महिलाओं के कुछ मनोनीत सदस्य, सहकारी समितियों के प्रतिनिधि तथा क्षेत्र के राज्य व केन्द्रीय ससंद के निर्वाचित गैर सरकारी व्यक्ति होता है। कुछ राज्यों में ग्राम सभा पंचायत समिति के लिए अपने प्रतिनिधि प्रत्यक्षतः निर्वाचित करके भेजती है। यह समिति अपने क्षेत्र के विकास कार्यों को देखती है तथा यह योजना तैयार करती है व उन्हें लागू भी करती है। समिति अपने क्षेत्र में स्वस्थ प्राथमिक शिक्षा, सफाई व संचार विकास कार्यों को भी अपने हाथों में लेती है। वह पंचायत के कार्यों का निरीक्षण कर व उनके बजट की जाँच कर उन्हें सुझाव भी दे सकती है। इन सबके अतिरिक्त "उत्तर प्रदेश पंचायत विधि अधिनियम 1994 में पंचायत समिति के कार्यों की विस्तृत विवेचना कर उसके 3 कार्य गिनाये। इस समिति की मुख्य दो कमियां हैं (1) उनके पास राजस्व के स्वतन्त्र स्रोत नहीं हैं। उनके पास किसी विशेष कार्यक्रम या विकास योजना को प्रारम्भ करने की सामर्थ्य नहीं है क्योंकि इसके लिए उसके पास कोष नहीं है। उन्हें मिलने वाला अनुदान भी विशिष्ट कार्य हेतु होता है। (2) समिति में चुने हुए सदस्यों से अधिक संख्या मनोनीत सदस्यों की है। क्षेत्र अधिकारी व उनके सहायक ग्रामीण क्षेत्रों के भोले-भाले लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण का उपहास एक रूप में देखा जा सकता है।
तृतीय स्तर : जिला परिषद - उच्च स्तर जिला परिषदें हैं। जिला परिषद में सामान्यतः पंचायत समिति के प्रतिनिधि समाज सामान्यतः पंचायत समिति के प्रतिनिधि समाज के दुर्बल वर्ग व महिलाओं के कुछ प्रतिनिधि तथा उस क्षेत्र से निर्वाचित सदस्य, जो संसद या राज्य विधायिका के सदस्य होते हैं। पंचायत समिति के सदस्य जिला परिषद के पदेन सदस्य होते हैं। जिलाधिकारी का इस परिषद का सदस्य होना उल्लेखनीय बात है। यह समन्वय करने वाली संस्था है जिसका कार्य पंचायत समितियों का निरीक्षण व नियंत्रण करना तथा विकास योजना के क्रियान्वयन में राज्य सरकार को परामर्श देना है। कुछ राज्यों में जिला परिषदें पंचायत समितियों के बजट स्वीकार करती हैं व धन वितरण भी करती है।
जिला परिषद के कार्य - पंचायत विधि अधिनियम 1994 में क्षेत्र पंचायत के कार्यों का विस्तार के साथ उल्लेख करते हुए उनके 31 कार्य गिनाये जाते हैं जो निम्न प्रकार है-
1. कृषि उत्पादन बढ़ाने के उपाय, गोदामों की स्थापना व अनुरक्षण।
2. सरकार द्वारा सौंपे गये भूमि सुधार, संरक्षण, चकबन्दी कार्यक्रमों की योजना का क्रियान्वयन।
3. लघु सिंचाई योजनाओं का निर्माण व अनुरक्षण, जल वितरण का प्रबन्ध।
4. पशु पालन, पशु चिकित्सा सेवा की स्थापना, नस्लों में सुधार, दुग्ध उद्योग, मुर्गी पालन व सुअर पालन का विकास।
5. मत्स्य पालन का विकास तथा मछुआरा कल्याण कार्यक्रमों का क्रियान्वयन।
6. सामाजिक व फार्म वानिकी, ईंधन, वृक्षारोपण, रेशम उत्पादन का निर्माण।
7. लघु वन उत्पाद के कार्यक्रमों की उन्नति व क्रियान्वयन।
8. लघु उद्योग व खाद्य प्रसंस्करण इकाई की उन्नति।
9. कुटीर एवं ग्रामीण उद्योगों में प्रशिक्षण के लिए प्रशिक्षण केन्द्रों की स्थापना एवं अनुरक्षण व जिला स्तर पर पंचायत उद्योग की स्थापना।
10. ग्रामीण आवास कार्यक्रमों का विकास, विश्राम गृहों का निर्माण।
11. पेयजल की व्यवस्था, जल प्रदूषण की रोकथाम तथा नियन्त्रण |
12. ईंधन व चारा कार्यक्रमों का विकास।
13. जिले की ग्रामीण सड़कों, पुलियों, पुलों व जल मार्गों का विकास व रक्षा सड़कों पर सार्वजनिक स्थानों पर अतिक्रमण हटाने में मदद करना।
14. ग्रामीण विद्युतीकरण में ग्राम पंचायतों व क्षेत्र पंचायतों की सहायता करना, ग्रामीण क्षेत्रों में प्रकाश के वितरण में मदद करना।
15. ऊर्जा स्रोतों का विकास, ग्राम पंचायतों व क्षेत्र पंचायतों द्वारा इस प्रसंग में अपनाये गये कार्यक्रमों में सहायता करना।
16. गरीबी उपशमन कार्यक्रमों की योजना व पर्यवेक्षण।
17. प्रारम्भिक व माध्यमिक विद्यालयों का निर्माण व शिक्षा का प्रबन्ध।
18. तकनीकी व व्यावसायिक प्रशिक्षण केन्द्रों की स्थापना व विकास।
19. प्रौढ साक्षरता व अनौपचारिक शिक्षा कार्यक्रमों का नियोजन।
20. पुस्तकालयों व वाचनालयों का निर्माण व अनुरक्षण।
21. सांस्कृतिक क्रियाकलापों का विकास व व्यवस्था।
22. ग्रामीण बाजारों व मेलों का पर्यवेक्षण व नियंत्रण।
23. चिकित्सा व स्वच्छता महामारियों की रोकथाम व नियंत्रण।
24. परिवार कल्याण कार्यक्रमों का क्रियान्वयन।
25. वृद्धावस्था व विधवा पेंशन योजना, विकलांग व मानसिक रूप से विकृति की सहायता।
26. प्रसूति व बाल स्वास्थ्य कार्यक्रमों का क्रियान्वयन।
27. अनुसूचित जाति व जनजाति के अन्याय व शोषण से रक्षा, छात्रावास की स्थापना व सामाजिक न्याय की योजना।
28. ग्रामोपयोग की वस्तुओं का वितरण।
29. समुदायिक अस्तियों का परीक्षण व अनुरक्षण |
30. नियोजन का आंकड़े बनाना व समन्वय व एकीकरण व योजनाओं का निष्पादन सुनिश्चित करना।
31. अकाल व अन्य परिस्थितियों में आवश्यक सहायता की व्यवस्था करना। बाजारों, बालगृहों, विश्राम गृहों की स्थापना व प्रबन्धं का निरीक्षण करना।
जिला परिषदों की वित्तीय व्यवस्था राज्य सरकारों द्वारा प्रदत्त अनुदानों, भूमि उपकरों के अंशों व कुछ स्थानीय करों व उपकरों से होती है। 1963 में पंचायती राज पर नियुक्ति एक अध्ययन दल ने राजस्व के कुछ लचीले स्रोत को जिला परिषदों को देने की संस्तुतियाँ की जिससे जिला परिषद पर स्थानीय स्वशासन के अंग को प्रभावी बनाया जा सके।
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- प्रश्न- सन 1909 ई. अधिनियम पारित होने के कारण बताइये।
- प्रश्न- भारत सरकार अधिनियम, (1909 ई.) के प्रमुख प्रावधानों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारत सरकार अधिनियम, 1909 ई. के मुख्य दोषों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 1935 के भारत सरकार अधिनियम की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- भारत सरकार अधिनियम, 1935 ई. का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।
- प्रश्न- 'भारत के प्रजातन्त्रीकरण में 1935 ई. के अधिनियम ने एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। क्या आप इस कथन से सहमत हैं?
- प्रश्न- भारत सरकार अधिनियम, 1919 ई. के प्रमुख प्रावधानों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- सन् 1995 ई. के अधिनियम के अन्तर्गत गर्वनरों की स्थिति व अधिकारों का परीक्षण कीजिए।
- प्रश्न- माण्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार (1919 ई.) के प्रमुख गुणों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- लोकतंत्र के आयाम से आप क्या समझते हैं? लोकतंत्र के सामाजिक आयामों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- लोकतंत्र के राजनीतिक आयामों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- भारतीय राजनीतिक व्यवस्था को आकार देने वाले कारकों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- भारतीय राजनीतिक व्यवस्था को आकार देने वाले संवैधानिक कारकों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- संघवाद (Federalism) से आप क्या समझते हैं? क्या भारतीय संविधान का स्वरूप संघात्मक है? यदि हाँ तो उसके लक्षण क्या-क्या हैं?
- प्रश्न- भारतीय संविधान संघीय व्यवस्था स्थापित करता है। संक्षेप में बताएँ।
- प्रश्न- संघवाद से आप क्या समझते हैं? संघवाद की पूर्व शर्तें क्या हैं? भारत के सन्दर्भ में संघवाद की उभरती हुई प्रवृत्तियों की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- भारत के संघवाद को कठोर ढाँचे में नही ढाला गया है" व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- राज्यों द्वारा स्वयत्तता (Autonomy) की माँग से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- क्या भारत को एक सच्चा संघ (True Federation) कहा जा सकता है?
- प्रश्न- संघीय व्यवस्था में केन्द्र शक्तिशाली है क्यों?
- प्रश्न- क्या भारतीय संघीय व्यवस्था में गठबन्धन की सरकारें अपरिहार्य हैं? चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- क्या क्षेत्रीय राजनीतिक दल भारतीय संघीय व्यवस्था के लिए संकट है? चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- केन्द्रीय सरकार के गठन में क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की भूमिका की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भारत में गठबन्धन सरकार की राजनीति क्या है? गठबन्धन धर्म से क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- भारत के प्रमुख राजनीतिक दलों के विषय में संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
- प्रश्न- राजनीतिक दलों का वर्गीकरण करें। दलीय पद्धति कितने प्रकार की होती है? गुण-दोषों के आधार पर विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- दलीय पद्धति के लाभ व हानियाँ क्या हैं?
- प्रश्न- भारतीय दलीय व्यवस्था में पिछले 60 वर्षों में आए परिवर्तनों के कारणों की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक उदारवाद के इस युग में भारत में गठबंधन की राजनीति के भविष्य की आलोचनात्मक चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- दलीय प्रणाली (Party System) में क्या दोष पाये जाते हैं?
- प्रश्न- दबाव समूह व राजनीतिक दलों में क्या-क्या अन्तर है?
- प्रश्न- भारत में क्षेत्रीय दलों के उदय एवं विकास के लिए उत्तरदायी तत्व कौन से हैं?
- प्रश्न- 'गठबन्धन धर्म' से क्या तात्पर्य है? क्या यह नियमों एवं सिद्धान्तों के साथ समझौता है?
- प्रश्न- क्षेत्रीय दलों के अवगुण, टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- सामुदायिक विकास कार्यक्रम क्या है? सामुदायिक विकास कार्यक्रम का क्या उद्देश्य है?
- प्रश्न- 73वाँ संविधान संशोधन अधिनियम की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- पंचायती राज से आप क्या समझते हैं? ग्रामीण पुननिर्माण में पंचायतों के कार्यों एवं महत्व को बताइये।
- प्रश्न- भारतीय ग्राम पंचायतों के दोषों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- ग्राम पंचायतों का ग्रामीण समाज में क्या महत्व है?
- प्रश्न- क्षेत्र पंचायत के संगठन तथा कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- जिला पंचायत का संगठन तथा ग्रामीण समाज में इसकी भूमिका की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भारत में स्थानीय शासन के सम्बन्ध में 'पंचायत राज' के सिद्धान्त व व्यवहार की आलोचना कीजिए।
- प्रश्न- नगरपालिका क्या है? तथा नगरपालिका के कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नगरीय स्वायत्त शासन की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- ग्राम सभा के प्रमुख कार्य बताइये।
- प्रश्न- ग्राम पंचायत की आय के प्रमुख साधन बताइये।
- प्रश्न- पंचायती व्यवस्था के चार उद्देश्य बताइये।
- प्रश्न- ग्राम पंचायत के चार अधिकार बताइये।
- प्रश्न- न्याय पंचायत का गठन किस प्रकार किया जाता है?
- प्रश्न- ग्राम पंचायत से आप क्या समझते तथा ग्राम सभा तथा ग्राम पंचायत में क्या अन्तर है?
- प्रश्न- ग्राम पंचायत की उन्नति के लिए सुझाव दीजिए।
- प्रश्न- ग्रामीण समुदाय पर पंचायत के प्रभाव का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में पंचायत राज संस्थाएँ बताइये।
- प्रश्न- क्षेत्र पंचायत का ग्रामीण समाज में क्या महत्व है?
- प्रश्न- ग्राम पंचायत के महत्व को बढ़ाने के लिए सरकार के द्वारा क्या प्रयास किये गये हैं?
- प्रश्न- नगर निगम के संगठनात्मक संरचना का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नगर निगम के भूमिका एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नगरीय स्वशासन संस्थाओं की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नगरीय निकायों की संरचना पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- नगर पंचायत पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- दबाव व हित समूह में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- दबाव समूह से आप क्या समझते हैं? दबाव समूहों के क्या लक्षण हैं? दबाव समूहों द्वारा अपनाई जाने वाली कार्यप्रणाली के विषय में बतायें।
- प्रश्न- दबाव समूह अपने हित पूरा करने के लिए किस प्रकार कार्य करते हैं?
- प्रश्न- दबाव समूहों के महत्व पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- भारत के प्रमुख राजनीतिक दलों के विषय में संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
- प्रश्न- दबाव समूह किसे कहते हैं? दबाव समूह के कार्यों को लिखिए। भारत की राजनीति में दबाव समूहों की भूमिका की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- मतदान व्यवहार क्या है? मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाले तत्वों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- दबाव समूह व राजनीतिक दलों में क्या-क्या अन्तर है?
- प्रश्न- दबाव समूहों के दोषों का वर्णन करें।
- प्रश्न- भारत में श्रमिक संघों की विशेषताएँ। टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- भारत में निर्वाचन पद्धति के दोषों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारत में निर्वाचन पद्धति के दोषों को दूर करने के सुझाव दीजिए।
- प्रश्न- जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1996 के अंतर्गत चुनाव सुधार के संदर्भ में किये गये प्रावधानों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- क्या निर्वाचन आयोग एक निष्पक्ष एवं स्वतन्त्र संस्था है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- चुनाव सुधारों में बाधाओं पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाले तत्व बताइये।
- प्रश्न- चुनाव सुधार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- अलगाव से आप क्या समझते हैं? अलगाववाद के कारण क्या हैं?
- प्रश्न- भारतीय राजनीति में धर्म की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- धर्मनिरपेक्षता से आप क्या समझते हैं? धर्मनिरपेक्षता के संवैधानिक पक्ष को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सकारात्मक राजनीतिक कार्यवाही से क्या आशय है? इसके लिए भारतीय संविधान में क्या प्रावधान किए गए हैं?
- प्रश्न- जाति को परिभाषित कीजिए। भारतीय राजनीति पर जातिगत प्रभाव का अध्ययन कीजिए। जाति के राजनीतिकरण की विवेचना भी कीजिए।
- प्रश्न- निर्णय प्रक्रिया में राजनीतिक दलों में जाति की क्या भूमिका है?
- प्रश्न- राज्यों की राजनीति को जाति ने किस प्रकार प्रभावित किया है?
- प्रश्न- क्षेत्रीयतावाद (Regionalism) से क्या अभिप्राय है? इसने भारतीय राजनीति को किस प्रकार प्रभावित किया है? क्षेत्रवाद के उदय के क्या कारण हैं?
- प्रश्न- भारतीय राजनीति पर क्षेत्रवाद के प्रभावों का अध्ययन कीजिए।
- प्रश्न- क्षेत्रवाद के उदय के लिए कौन-से तत्व जिम्मेदार हैं?
- प्रश्न- भारत में भाषा और राजनीति के सम्बन्धों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- उर्दू और हिन्दी भाषा को लेकर भारतीय राज्यों में क्या विवाद है? संक्षेप में चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- भाषा की समस्या हल करने के सुझाव दीजिए।
- प्रश्न- साम्प्रदायिकता से आप क्या समझते हैं? साम्प्रदायिकता के उदय के कारण और इसके दुष्परिणामों की चर्चा करते हुए इसको दूर करने के सुझाव बताइये। भारतीय राजनीति पर साम्प्रदायिकता का क्या प्रभाव पड़ा? समझाइये।
- प्रश्न- साम्प्रदायिकता के उदय के पीछे क्या कारण हैं?
- प्रश्न- साम्प्रदायिकता के दुष्परिणामों की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- साम्प्रदायिकता को दूर करने के सुझाव दीजिये।
- प्रश्न- भारतीय राजनीति पर साम्प्रदायिकता के प्रभाव का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- जाति व धर्म की राजनीति भारत में चुनावी राजनीति को कैसे प्रभावित करती है। क्या यह सकारात्मक प्रवृत्ति है या नकारात्मक?
- प्रश्न- "वर्तमान भारतीय राजनीति में धर्म, जाति तथा आरक्षण प्रधान कारक बन गये हैं।" इस पर अपना दृष्टिकोण स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'जातिवाद' और सम्प्रदायवाद प्रजातंत्र के दो बड़े शत्रु हैं। टिप्पणी करें।
- प्रश्न- उत्तर प्रदेश के बँटवारे की राजनीति को समझाइए।
- प्रश्न- जन राजनीतिक संस्कृति के विकास के कारण का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- 'भारतीय राजनीति में जाति की भूमिका' संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- चुनावी राजनीति में भावनात्मक मुद्दे पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भ्रष्टाचार से क्या अभिप्राय है? भ्रष्टाचार की समस्या के लिए कौन से कारण उत्तरदायी हैं? इस समस्या के समाधान के लिए उपाय बताइए।
- प्रश्न- भ्रष्टाचार के लिए कौन-कौन से कारण उत्तरदायी हैं?
- प्रश्न- भ्रष्टाचार उन्मूलन के कौन-कौन से उपाय हैं?
- प्रश्न- भारत में राजनैतिक, व्यापारिक-औद्योगिक तथा धार्मिक क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भ्रष्टाचार क्या है? भारत के आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, व्यापारिक एवं धार्मिक क्षेत्रों में व्याप्त भ्रष्टाचार का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत के आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, व्यापारिक एवं धार्मिक क्षेत्रों में व्याप्त भ्रष्टाचार का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भ्रष्टाचार के प्रभावों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार की रोकथाम के सुझाव दीजिये।
- प्रश्न- भ्रष्टाचार से आप क्या समझते हैं? इसके प्रकारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भ्रष्टाचार की विशेषताओं को बताइए।
- प्रश्न- लोक जीवन में भ्रष्टाचार के कारण बताइये।
- प्रश्न- राष्ट्रपति शासन क्या है? यह किन परिस्थितियों में लागू होता है? राष्ट्रपति शासन लगने से क्या परिवर्तन होता है?
- प्रश्न- दल-बदल की समस्या (भारतीय राजनैतिक दलों में)।
- प्रश्न- राष्ट्रपति और प्रधानमन्त्री के सम्बन्धों पर वैधानिक व राजनीतिक दृष्टिकोण क्या है? उनके सम्बन्धों के निर्धारक तत्व कौन-से हैं?
- प्रश्न- दल-बदल कानून (Anti Defection Law) पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- संविधान के क्रियाकलापों पर पुनर्विलोकन हेतु स्थापित राष्ट्रीय आयोग (2002) की दलबदल नियम पद संस्तुति, टिप्पणी कीजिए।